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यूपी के बन बिभाग के अफसरों की नाकाबिलियत और असवेंदंसीलता के कारण पीलीभीत से निकाला बाघ फ़ैज़ाबाद में 24 फरवरी 2009 की शाम मौत की भेंट चड गया है. उसकी मौत के जिम्मेदार नाकाम अफसर बाघ मौत पर खुशी माना रहे है कि चलो एक मुसीबत का अंत हो गया. लेकिन माह नवंबर 2008 में पीलीभीत से निकला यह बाघ साउथ-खीरी के जंगल से होता हुआ सीतापुर फिर बाराबकी होकर लखनऊ तक पहुँच गया. वहाँ जब उसने एक युवक का शिकार किया तो अपनी असफलता पर परदा डालते हुए जिम्मेदार बनाधिकारियो ने एक साज़िश के तहत उसे आदमखोर घोषित करा दिया. प्रमुख वन संरछ्क वन्यजीव वीके पटनायक ने भी बीना सोचे बिचारे बाघ को गोली मरने का आदेश जारी कर दिया था. इस पर लखनऊ आए रास्ट्रीय बाघ सरछ्ण प्राधिकरण के सदस्य सचिव डा राजेश गोपाल ने बाघ की मौत की सजा समाप्त कराने का असफल प्रयास भी किया लेकिन यूपी बन विभाग के नकारा अफसरो के आगे उनकी एक भी न चली. इसके बाद मौत से आँख मिचोली खेलता बाघ फ़ैज़ाबाद तक पहुँच गया. वहाँ लगभग एक माह तक अभियान चलाया गया, जिसमें लाखों रुपए खर्च हुए. आख़िर में 24.02.2009 को हैदराबाद के शिकारी नवाब ने उसे गोली का निशाना बनाकर मौत के घाट उतार दिया. बनाधिकारियो की नाकामी का खुलाशा इसी बात से हो जाता है कि इस बाघ को पीलीभीत के जगल से निकलते ही अगर प्रयास किए जाते तो रोक कर उसे पुन्: जंगल में भेजा जा सकता था लेकिन इस तरह के कतई कोई प्रयास नहीं किए गए. परिणाम बाघ लखीमपुर की साउथ फारेस्ट डिवीजन के मोहम्मडी इलाके में कई दिनों तक मोजूद रहा इसके बाद सीतापुर में यह बाघ बिचरण करता रहा. लेकिन यह बनाधिकारियो की सुस्ती ही कहीं जाएगी कि इस बाघ की वापसी के कोई जतन नहीं किए गए. अगर प्रयास किए जाते तो शायद बाघ को जंगल में वापस भेजा जा सकता था. ऐसा क्यों नही किया गया ? इसकी जाँच होनी चाहिए. और जिम्मेदारी तय करके दोषियों को सजा भी मिलनी चाहिए ताकि आगे बन विभाग के अफसर भी सीख ले सकें और इनके द्वारा की जाने वाली गलतियों की सजा किसी अन्य बाघ को न मिल सके.
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