गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

दुधवा नॅशनल पार्क Bengal Tiger Profile

दुधवा नॅशनल पार्क, यूपी [इंडिया]
Tigers are the largest members of the cat family and are renowned for their power and strength।There were eight tiger subspecies at one time, but three became extinct during the 20th century. Over the last 100 years, hunting and forest destruction have reduced tiger populations from hundreds of thousands of animals to perhaps fewer than 2,500. Tigers are hunted as trophies, and also for body parts that are used in traditional Chinese medicine. All five remaining tiger subspecies are endangered, and many protection programs are in place.Bengal tigers live in India and are sometimes called Indian tigers. They are the most common tiger and number about half of all wild tigers. Over many centuries they have become an important part of Indian tradition and lore.Tigers live alone and aggressively scent-mark large territories to keep their rivals away. They are powerful nocturnal hunters that travel many miles to find buffalo, deer, wild pigs, and other large mammals. Tigers use their distinctive coats as camouflage (no two have exactly the same stripes). They lie in wait and creep close enough to attack their victims with a quick spring and a fatal pounce. A hungry tiger can eat as much as 60 pounds (27 kilograms) in one night, though they usually eat less.Despite their fearsome reputation, most tigers avoid humans; however, a few do become dangerous maneaters. These animals are often sick and unable to hunt normally, or live in an area where their traditional prey has vanished.Females give birth to litters of two to six cubs, which they raise with little or no help from the male. Cubs cannot hunt until they are 18 months old and remain with their mothers for two to three years, when they disperse to find their own territory.

Fast Facts
Type: Mammal
Diet: Carnivore
Average lifespan in the wild: 8 to 10 years
Size: Head and body, 5 to 6 ft (1.5 to 1.8 m); Tail, 2 to 3 ft (0.6 to 0.9 m)
Weight: 240 to 500 lbs (109 to 227 kg)
Did you know? A tiger's roar can be heard as far as two miles (three kilometers) away.
Size relative to a 6-ft (2-m) man:

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

फैजाबाद में सुनियोजित साज़िश के तहत आदमखोर घोषित कराकर बाघ को गोली का निशाना बनाकर मार देने की सनसनीखेज घटना तब हुई है जब पूरा विश्व बाघों को बचाने के प्रयास कर रहा है. इसकी सीबीआई जाँच यूँ होनी चाहिए क्योंकि अगर बन विभाग द्वारा प्रयास किए जाते तो बाघ की जान बच सकती थी. लेकिन इस तरह के कोई प्रयास नहीं किए गए ?

उधर यूपी के ही लखीमपुर जिले में दुधवा टाईगर रिजर्व में शामिल किशनपुर वनपशु बिहार के जंगल से सटे साउथ खीरी फारेस्ट डिवीजन की भीरा रेंज के कापतादा इलाके में पिछले एक माह से घूम रहे बाघ द्वारा चार मानव हत्तायें की जा चुकी हैं । बनाधिकारी इस baagh ko bhee aadamkhor ghoshit karaakar

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

यूपी में एक बाघ और मारा गया


यूपी के बन बिभाग के अफसरों की नाकाबिलियत और असवेंदंसीलता के कारण पीलीभीत से निकाला बाघ फ़ैज़ाबाद में 24 फरवरी 2009 की शाम मौत की भेंट चड गया है. उसकी मौत के जिम्मेदार नाकाम अफसर बाघ मौत पर खुशी माना रहे है कि चलो एक मुसीबत का अंत हो गया. लेकिन माह नवंबर 2008 में पीलीभीत से निकला यह बाघ साउथ-खीरी के जंगल से होता हुआ सीतापुर फिर बाराबकी होकर लखनऊ तक पहुँच गया. वहाँ जब उसने एक युवक का शिकार किया तो अपनी असफलता पर परदा डालते हुए जिम्मेदार बनाधिकारियो ने एक साज़िश के तहत उसे आदमखोर घोषित करा दिया. प्रमुख वन संरछ्क वन्यजीव वीके पटनायक ने भी बीना सोचे बिचारे बाघ को गोली मरने का आदेश जारी कर दिया था. इस पर लखनऊ आए रास्ट्रीय बाघ सरछ्ण प्राधिकरण के सदस्य सचिव डा राजेश गोपाल ने बाघ की मौत की सजा समाप्त कराने का असफल प्रयास भी किया लेकिन यूपी बन विभाग के नकारा अफसरो के आगे उनकी एक भी न चली. इसके बाद मौत से आँख मिचोली खेलता बाघ फ़ैज़ाबाद तक पहुँच गया. वहाँ लगभग एक माह तक अभियान चलाया गया, जिसमें लाखों रुपए खर्च हुए. आख़िर में 24.02.2009 को हैदराबाद के शिकारी नवाब ने उसे गोली का निशाना बनाकर मौत के घाट उतार दिया. बनाधिकारियो की नाकामी का खुलाशा इसी बात से हो जाता है कि इस बाघ को पीलीभीत के जगल से निकलते ही अगर प्रयास किए जाते तो रोक कर उसे पुन्: जंगल में भेजा जा सकता था लेकिन इस तरह के कतई कोई प्रयास नहीं किए गए. परिणाम बाघ लखीमपुर की साउथ फारेस्ट डिवीजन के मोहम्मडी इलाके में कई दिनों तक मोजूद रहा इसके बाद सीतापुर में यह बाघ बिचरण करता रहा. लेकिन यह बनाधिकारियो की सुस्ती ही कहीं जाएगी कि इस बाघ की वापसी के कोई जतन नहीं किए गए. अगर प्रयास किए जाते तो शायद बाघ को जंगल में वापस भेजा जा सकता था. ऐसा क्यों नही किया गया ? इसकी जाँच होनी चाहिए. और जिम्मेदारी तय करके दोषियों को सजा भी मिलनी चाहिए ताकि आगे बन विभाग के अफसर भी सीख ले सकें और इनके द्वारा की जाने वाली गलतियों की सजा किसी अन्य बाघ को न मिल सके.

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

अफसरों की नाकामी से बाघ हो रहें हैं आदमखोर


लखीमपुर जिले के साउथ फारेस्ट डिविजन की भीरा रेंज के ग्राम कापटांडा के आसपास चार मानव हत्या करने वाला बाघ यूपी के वन बिभाग के अफसरों की नाकामी और असफलता की सलीब पर चड्कर 20 फरवरी 2009 को मौत की सजा पा चुका है. अब बन बिभाग के ही लोग जो बाघों के रछक थे वही उसे गोली मार कर मौत की नींद सुलाने के लिए बाघ को खोज रहें है.जबकि दो माह पहले किशनपुर वन पशु बिहार के जंगल से बाहर आए इस बाघ को अगर प्रयास किए जाते तो इसे वापस जंगल में भेजा सकता था लेकिन बनाधिकारियो कोई भी ऐसा सार्थक प्रयास नहीं किया. परिणाम बाघ जंगल में भोजन की हुई कमी के कारण खेत में झुकाकर कम कराने वालों को चोपाया समझकर मानव पर हमला शुरु किया और फिर खूंखार बन कर चार मानव ही हत्या करके बाघ आदमखोर बन गया. इसके बाद भी उसे पकड़ने के अथवा बेहोश करने के सार्थक प्रयास नहीं किए गए और बाघ को मानाव के लिए खतरनाक घोषित करके मुख्य वन संरछक वन्यजीव बीके पटनायक ने बाघ को गोली मरने का आदेश जारी कर दिया है. एक तरफ़ पूरा विश्व बाघ संरछण की बात कर रहा है और यूपी के अफसर अपनी नाकामी पर परदा डालने के लिए मानव हत्या का सहारा लेकर यूपी के जंगलों से बाघोन का सफाया कराने से परहेज़ नहीं कर रहे हैं. इससे पहले भी बिभागीय अफसरों की सुस्ती से पीलीभीत के जंगल से निकाला बाघ लखनऊ तक पहुँचा अब वह फ़ैज़ाबाद के आसपास अपनी जान बचता घूम रहा है. इस बाघ को भी बीच में रोक कर जंगल में वापस किया जा सकता था लेकिन यह न करके अपनी नाकामी की चादर की आड़ लेकर इस बाघ को भी मौत की सजा दिलवाने में सफल रहे थे. आख़िर यह कब तक चलेगा. यह स्वयं में बिचारणीय प्रश्न बन गया है. बाघों को आदमखोर घोषित करने से पहले क्या अध्ययन किया जाता है. शायद नही, क्योकि कांपटांडा वाले बाघ में कागजो पर बने गई कमेटी ने बाघ की मौत के फरमान की सिफारिश कर दी थी. यह क्रूर मजाक बाघ के जीवन के साथ क्यों किया गया इसमें साज़िश की स्पस्ट बू आ रही है.भ्रस्टाचार और अफसरों की नालायकी के कारण यूपी में प्रोजेक्ट टाईगर असफलता की डलान पर चल रहा है. तीस साल में अरबों रुपया खर्चने के बाद भी बाघों की संख्या बडने के बजाय घाट ही रही है. आख़िर क्यों ? कहीं न कहीं सिस्टम में झोल है. और नाकाम बनाधिकारी इस पर परदा डाल रहें हैं. राजस्थान का सारिस्का नेशनल पार्क इसका जीता जागता उदाहरण है. वहाँ भी बनाधिकारियो की ही नाकामियों के चलते बाघ गायब हो गए थे. अब यही साज़िश दुधवा नेशनल पार्क के बाघों के साथ रची जा रही है.बाघ जंगल के बाहर क्यों आते हैं इस पर शोध क्यों नहीं किए जा रहें. बिड्म्बना यह है कि दुधवा प्रशासन किसी को इसकी इजाजत भी नहीं देते है. ऐसा क्यो किया जाता है. इसकी जाँच होनी चाहिए. फिलहाल बाघ को मार देना क्या समस्या का स्थाई समाधान है. जवाब होगा शायद नहीं ? और आगे भी कोई बाघ आदमखोर नहीं बनेगा. इसकी भी कोई गारन्टी नहीं है. ऐसी दशा में अब यह आवश्यक हो गया है कि प्रोजेक्ट टाइगर की समीछा की जाए. और मानव तथा वन्यजीवों के बीच बड रहे संघर्श को नई परिभाषा दी जाए ताकि दोनों अपनी सीमाओं में सुरछित जीवन ब्यतीत कर सकें. अन्यथा की सिथति में परिणाम खतरनाक ही निकलेगे. जिसका खामियाजा दोनो को भुगतना पडेगा.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डीपी मिश्रा

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

लखीमपुर में बाघ ने महिला को शिकार


जंगल में घटनास्थल को देखते बनाधिकारी



यूपी के जिला लखीमपुर की साउथ खीरी फारेस्ट डिविजन की भीरा रेंज में बाघ ने जंगल के भीतर एक और महिला को शिकार बनाया है . अब तक यहाँ बाघ चार लोगों को मार चुका है. इसके बाद भी फारेस्ट बिभाग ईसाई पकड़ने के कोई कारगर उपाय नहीं कर पा रहा है. उलटे बाघ को नरभछी घोषित कराकर उसकी जान लेने का षड्यंत्र बनाने में जूट गया है. यह उसकी नाकामी का सबूत है. बाघ को मार देना ही क्या समस्या का हाल है ??????????????????????

Indian HOT College Girls ~ PictureBuzz

Indian HOT College Girls ~ PictureBuzz

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

दुधवा का मौसम

Winter
October to February
Summer
March to June
Rainy
June to September
Rainfall 1500 mm. (Average)
Nov to Feb.
Max 20°C-30°CMin 4°C - 8°C
Frequent frost, chilly nights
March to May
Max 30°C-35°CMin 10°C-15°C
Pleasant mornings & evenings.
June to Oct
Max 35°C-43°CMin 20°C-25°C
Heavy rains, hot and humid climate.
90% of total rainfall lies between June to September that is why Dudwa Tiger Reserve remains closed from 15th June to 14th Nov. every year for the visitors. January is very cold and the average temperature remains between 9°C to 22°C with fogy nights. May and June remain very hot with maximum temperature 40°C to 43°C.

दुधवा का मौसम

Winter
October to February
Summer
March to June
Rainy
June to September
Rainfall 1500 mm. (Average)
Nov to Feb.
Max 20°C-30°CMin 4°C - 8°C
Frequent frost, chilly nights
March to May
Max 30°C-35°CMin 10°C-15°C
Pleasant mornings & evenings.
June to Oct
Max 35°C-43°CMin 20°C-25°C
Heavy rains, hot and humid climate.
90% of total rainfall lies between June to September that is why Dudwa Tiger Reserve remains closed from 15th June to 14th Nov. every year for the visitors. January is very cold and the average temperature remains between 9°C to 22°C with fogy nights. May and June remain very hot with maximum temperature 40°C to 43°C.

दुधवा कैसे पहुंचे

UPSRTC and private bus services are available between Palia, Lakhimpur, Shahjahanpur, Bareilly, Delhi etc. Between Dudwa and Palia frequent private bus service is available
Distance By Road -
Palia
10 KM
Lakhimpur
90 KM
Shahjahanpur
107 KM
Lucknow
225 KM
Bareilly
190 KM
Delhi
430 KM

From Delhi
By Road : Delhi-Muradabad-Bareilly-Shahjahanpur-Khutar-Mailani-Bheera-Palia- Dudwa. (430 km.).
By Train : Delhi-Muradabad-Bareilly-Shahjahanpur (N.R.) 301 km. And then by road to Dudwa 107 km.
From Lucknow.
By Road : Lucknow-Sitapur-Lkahimpur-Bijuwa-Bheera-Palia-Dudwa (219 km.).
By Train : Lucknow-Sitapur-Lakhimpur-Gola-Mailani-Palia-Dudwa (NER) 270 km.(approx).
Nearest Railway Stations from Dudwa National Park
Dudwa - 4 km. Palia - 10 km. Mailani - 37 km.

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

Lakheempur-KHERI

लखीमपुर खेरी भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है । लखीमपुर नाम से एक जिला असम में भी है ।
जिले का मुख्यालय लखीमपुर है ।
क्षेत्रफल - 7680 वर्ग कि.मी.
जनसंख्या - 24,19,234 (2001 जनगणना)
साक्षरता -
एस. टी. डी (STD) कोड - 05872
जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में)
समुद्र तल से ऊँचाई -
अक्षांश - 27-6 से 28.6 उत्तर
देशांतर - 80.34 से 81.30 पूर्व
औसत वर्षा - 1093 मि.मी.
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान lakheemapur खेरी जिले में है
लखिमपुर जिला उत्तर प्रदेश कि राजधानी से १३५ किमि कि दूरि पर है।यह जिला मीतर गेज लाइन से भी रैल द्वारा सम्पर्क मे है। लखनऊ से यहा आने के लिये आपको ऐश्बाग जक्सन कड़ी शीर्षकसे रैल लेनी होगी।

लखीमपुर दुधवा नेशनल पार्क


775 Sqr KM forest area between Mohana and Suhaili river was declared as reserved forest in 1861. In 1977 Government declared 614 sqr KM area of district Kheri reserved as Dudwa National Park. Dudwa National Park is known as the Ist National Park of the state after formation of Uttrakhand. Another reserve area "Kishunpur Pashu Vihar" sanctuary located about 30 KM from Dudwa. Spread over about 204 sqr.km. , it lies on the banks of river Sharda and is surrounded by Sal forest of adjoining reserve forests.
In 1987 Dudwa National Park and Kishunpur Pashu Vihar was merged to form Dudwa Tiger Reserve (DTR). The Dudwa Tiger Reserve has total area of 818 sqr KM. It is home to a large number of rare and endangered species which includes Tiger, Leopard cat, Slath beer, rinosaurs (One horn), Hispid hare, Elephants, Black deer& Swamp deer etc.