सोमवार, 15 दिसंबर 2008

आतंकवाद के क्या यही मायने हैं ?

देश में रोज हों रही आतंकी घटनाओं ने समाज को हिलाकर रख दिया है। लगातार बिस्फोटो ने आम आदमी कीं सुरछा और देश के खुफिया तंत्र पर सवालिया निशान लगाया है। हर आतंक कीं घटना के बाद कडी सुरछा ब्यवस्था का राग अलापा जाता है। लेकिन नतीजा शून्य रहता है। आतंकी योजनाबद्ध तरीके से घटनाओं को अंजाम देकर साफ निकल जाते हैं। उसके बाद पुलिस का काम घटना में मारे गये लोगों को उठाना और घायलो को अस्पातल पहुँचाने तक रह जाता है। जबकि सुरछा एजेसिया बिस्फोट के तरीको का पता लगाने में जुट जाती है। जब तक हम बिस्फोट के तरीको का पता लगा पाते है। तब तक आतंकी एक नई घटना को अंजाम दे देते हैं। पुलिस व जांच एजेंसियो का काम फिर वही से शुरू हों जाता है. यह आतंकी कौन हैं? और इनका मकसद क्या है? यह बात हमेशा पर्दे के पीछे रह जाती है. चंद वही मोहरे आते हैं जिनका काम खत्म हो चुका होता है. इसमे ज्यादातर हमारे बीच के कुछ गुमराह युवक होते है. जयपुर्, बगलौर्, अहमदबाद, बिस्फोट हों या दिल्ली में हुए ताजा धमाके इस बात को साबित करते हैं कि अपने हाथो हम मात खा रहे हैं. देश के जो युवक इन आतंकियों से जुड्ते हैं वह अनपढ़ से लेकर उच्च शिछा प्राप्त होते है. इन युवको के जुड्ने का मकसद क्या है इस बात का पता न सुरछा एजेंसिया लगा पा रही हैं और न ही यह युवक इसकी वजह बता पाते हैं. पुलिस ने मुठभेड़ के दौरान कई को मार गिराया, जबकि कुछ को गिरफ्तार किया. फिर भी यह बात सामने नही आई है कि इन्होने यह देश बिरोधी कदम क्यों उठाया. और इसके पीछे कौन सी मजबूरिया रही. मुख्यरूप से इस बात पे गहन जाँच कीं जरूरत है कि भारतमाता के लाल देश को क्यों नुकसान पहुंचा रहे हैं. और जब बात मुस्लिम समाज से जुडे लोगों की हों तो और भी खतरनाक हों जाती है पिछले कुछ महीनो में देश के बिभिन्न जगहों पर हुए बिस्फोटो ने मुसलिम को ही जिम्मेदार करार दिया है. जबकि देश में चौदह करोड मुसल्मान अपनी पूरी धर्मिक स्वतंत्रता के साथ रह्ते है. चंद मुस्लिम युवको के कारण पूरे देश का मुसलमान संदिग्ध निगाह से देखा जाने लगा है. मौजूदा समय में मुसिलम अघोषित रुप से आतंक का पर्याय करार दिया जा रहा है. इसमे मुख्य रुप से दोषी मुस्लिम समाज के वह अगुवाकर भी हैं जो अपनी बात मजबूत तरीके से नही रखते हैं किसी भी मुस्लिम धर्मगुरू व नेता का आतंकवाद के बिरोध में मजबूत बयान नही आया.पहले हम किसी आतंकी घट्ना के पीछे पडोसी मुल्क पाकिस्तान का हाँथ बताकर अपना पीछा छुडा लेते थे और यह आरोप मड्ते थे कि देश में आईएसआई आतंकवाद की जडो को मजबूत कर कही है. लेकिन अब स्थितिया कफी हद तक भिन्न हों गई हैं, अब देश में ही जन्मी सिमी और इंडियन मुज्जाहिद्दीन जैसी सस्थाए आतंक्वादी घटनाओं को अंजाम दे रही हैं. इन संस्थाओ के संस्थापक से लेकर कार्यकर्ता तक भारतीय हैं. महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इन संस्थाओं को पैसा और हथियार कौन मुहैया करा रहा है. और किन-किन माध्यमों से इन तक पहुँच रहे हैं ? भारतीय खुफियातंत्र इनका पता लगाने में क्यों नाकामयाब हैं. भारी तादात में आतंक कीं घटनाएँ होने के बाद भी खुफियतंत्र के पास भी केवल सतही जानकारियाँ उपलब्ध हैं. अब जरूरत इस बात कीं है कि खुफियातंत्र उन वजहों को तलाश करे जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहें हैं इतना ही नही वह आतंक कीं घटना के उस मास्टरमाइंड तक पहुँचने का रास्ता भी तलाश करें. ना कि किसी को भी पकड़कर उसे मास्टरमाइंड साबित करने में अपनी ऊर्जा खपाए. राजनीतिक स्तर पर भी इन घटनाओं का लाभ उठाना छोड़कर देशहित कीं बात करनी चाहिए, और समाज को इन आतंकियों के मनसूबो को असफल करने के लिए तैयार करना चाहिए. तभी इस तरह कीं घटनाओं पर रोक लग सकेगी.............................................................. डीपी मिश्र

7 टिप्‍पणियां:

bijnior district ने कहा…

आपका हिंदी लिखाडि़यो की दुनिया में स्वागत । खूब लिखें। अच्छा लिखे। शुभकामनांए..
एक अनुरोध सैटिंग में जाकर वर्ड वैरिफिकेशन हटा दें। इससे टिप्पणी करने मे परेशानी होती है।

Unknown ने कहा…

aapka hindi blog ke duniya me swagat hai...bahut acchi aviwaktyee hai aapki....

likhte rahe....

RAJIV MAHESHWARI ने कहा…

आप आए बहुत अच्छा लगा हिन्दी चिठ्ठा जगत में आप का स्वागत है.कृपया मेरा भी ब्लाग देखे और सुझाव दे.

राजीव

Vineeta Yashsavi ने कहा…

Bahut sahi baat kahi hai pane.

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: ने कहा…

देवेन्द्र पोस्ट में चर्चा का विषय अच्छा लिया है लिखा भी अच्छा है | पर विचार उठाने में आप भी वही सोच सामने ले कर आए है 'गुम राह 'युवक की जो छद्म-धर्म-निरपेक्षता के पैरोकार या यूँ कहें ठेकेदार प्रयोग में लाते हैं | इतने पढ़े लिखे लोगों के इस में शामिल होने पकडे जाने के बाद और एक बार नही बार बार उसी समाज में के ही लोग क्यों पकडे जाते हैं कभी इस पर भी एपी ने सोचा है? सिमी इंडियन मुझाह्दीन आख़िर इसी देश में उसी इंगित समाज के गर्भ से जन्मा है ,या यूँ कहे ' माँ इंगित सामाज है पिता पाकिस्तानी सोच है " और आई एस आई जड़ें नही जमा रही है जा चुकीं हैं | आख़िर क्यो ? क्योंकि आज हमारे शासकों के पास इच्छा शक्ति का आभाव है | मुस्लिमों को वे केवल एक वोट बैंक मानते हैं नाकि इसदेश के अन्य नागरिकों की तरह नागरिक | भारतीय खुफिया तंत्र हर बात जानता है और जब्चाहे इनके आर्थिक तन्त्र के भारतीय हिस्से को नेस्ताबूद कर सकते हैं ,पर फ़िर यहाँ पर वही वोट बैंक की बात आड़े आ जाती है ,क्योंकि इस तंत्र के ९० प्रतिशत लोग उसी सामाज से आते है जिन्हें केवल और केवल वोट बैक ही समझा गया है और उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही का आदेश देते इच्छा शक्ति से हिन् शासक ई सी वोट बैंक खिसक जाए से डरता है ,रही १० % तो जयचंद इसी देश में हुए थे | इस लिए अपनी हिचक तोड़ो और वक्त की भालपर लिखी कटु सत्य को स्वीकार ते हुए जोर जोर पदों | बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपनी 'पड़ोसी देश -पडोसी देश की गरदान छोड़ कर पकिस्तान का नाम खुल कर लेना शुरू किया है "| सामाज वाद भारत की पुरानी परम्परा में सन्निहित है ,कोमुनिज्म मर चुका है | इस सोच से निकलो कि जो भी " भी रामका नाम लेता है वही भाजपाई होता है राम उसकी प्रापर्टी नही है| राजनीत में में जोभी है उसका अन्तिम लक्ष्य सत्ता ही होती है कोई वहाँ पर भजन कराने नही गया है |
हिन्दी चिट्ठा जगत में आप जैसे गंभीर विचारकों कि आवश्यकता है , bas is baat क बात का ध्यान रखें जो सोचें वह राजनीत से ऊपर उठकर सोचे ,राजनितिज्ञों कि भाषा नारों को वही तक रहने दें |

अभिषेक मिश्र ने कहा…

सही सवाल उठाये हैं आपने. स्वागत.

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

आपका स्वागत है ...निरंतरता की चाहत है
मेरे ब्लॉग पर पधारें स्वागत है